नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति का एक अहम पहलू है – अप्रत्याशित फैसले लेना। इस बार भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया है, जो न सिर्फ विपक्ष को हैरान कर गया, बल्कि देशभर में चर्चा का विषय बन गया। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेनकाब करने के लिए जो रणनीति तैयार की गई है, उसमें कांग्रेस नेता शशि थरूर और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को शामिल किया गया है। ये वही नेता हैं जो अक्सर मोदी सरकार के कटु आलोचक रहे हैं, लेकिन इस बार मिशन ‘पाक बेनकाब’ में ये दोनों चेहरे अहम किरदार निभाने जा रहे हैं।
🛑 क्या है मिशन ‘पाक बेनकाब’?
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने पाकिस्तान में छिपे आतंकवादी नेटवर्क की कमर तोड़ दी है। अब अगला कदम है – अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की पोल खोलना। इसके लिए भारत ने एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल गठित किया है, जो दुनिया भर के देशों में जाकर पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को उजागर करेगा।
🔥 शशि थरूर को क्यों चुना गया?
शशि थरूर को यूं ही इस मिशन का हिस्सा नहीं बनाया गया है। उनके पास अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष मजबूती से रखने का जबरदस्त अनुभव है:
- संयुक्त राष्ट्र में 29 वर्षों का अनुभव: 1978 से 2007 तक संयुक्त राष्ट्र में महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
- महासचिव की दौड़ में दूसरे स्थान पर रहे: थरूर 2006 में UN महासचिव की रेस में भी थे।
- कूटनीति में पारंगत: रूस-यूक्रेन युद्ध से लेकर ट्रंप-मोदी सीजफायर विवाद तक, थरूर ने भारत की कूटनीति का हमेशा समर्थन किया है।
- ऑपरेशन सिंदूर के समर्थक: थरूर ने खुलकर भारत का पक्ष लिया और कई अंतरराष्ट्रीय चैनलों पर पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठाई।
💥 ओवैसी की चौंकाने वाली एंट्री क्यों?
असदुद्दीन ओवैसी की छवि भले ही मुस्लिम नेता की हो, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के बाद उनकी देशभक्ति की मजबूत छवि भी सामने आई है:
- खुलेआम पाकिस्तान को लताड़ा: ओवैसी ने पाक को “दूसरा पुलवामा नहीं दोहराने” की चेतावनी दी।
- टीवी डिबेट्स में मुखर: पाकिस्तानी प्रवक्ताओं से सीधा टकराव किया और भारत का पक्ष मजबूती से रखा।
- मुस्लिम देशों में असर: ओवैसी मुस्लिम चेहरे के रूप में इस्लामी देशों में भारत की बात को असरदार ढंग से रख सकते हैं।
- लंदन से कानून की पढ़ाई: बतौर वकील उनका तर्कपूर्ण अंदाज़ उन्हें औरों से अलग बनाता है।
🧭 क्यों है यह मिशन खास?
यह कोई पहला मौका नहीं है जब विपक्ष और सत्ता एक साथ किसी अंतरराष्ट्रीय मिशन पर एकजुट हुए हों। 1994 में पीएम पीवी नरसिम्हा राव ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी को जिनेवा भेजा था। इस बार मोदी ने थरूर और ओवैसी को भेजकर दुनिया को दिखा दिया कि राष्ट्रहित के लिए राजनीतिक मतभेद भी दरकिनार किए जा सकते हैं।
🔚 निष्कर्ष:
प्रधानमंत्री मोदी का यह कदम न सिर्फ पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अकेला करेगा, बल्कि देश की राजनीति में एक नई परंपरा की भी शुरुआत है – “राष्ट्र पहले, राजनीति बाद में।” थरूर और ओवैसी की भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि जब बात देश की हो, तो विचारधाराएं भी साथ आ जाती हैं।