तेरा साथ छूटा और मैं टूट गई

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रिया एक सीधी-सादी सी लड़की थी। छोटे से कस्बे में रहने वाली, ज़्यादा कुछ नहीं चाहती थी ज़िंदगी से — बस थोड़ा प्यार, थोड़ा अपनापन। जब वो कॉलेज में आई, तो वहीं उसकी मुलाक़ात हुई आरव से।

आरव शहर से आया हुआ एक स्टाइलिश और खुशमिजाज लड़का था। उसके बात करने का तरीका, उसका हंसना, सब कुछ रिया को पहली ही नजर में अच्छा लग गया। धीरे-धीरे दोस्ती हुई, और फिर ये दोस्ती प्यार में बदल गई।

आरव हर दिन रिया को स्पेशल फील कराता। “रिया, तुम मेरी दुनिया हो,” वो अक्सर कहता। रिया भी खुद को दुनिया की सबसे खुशकिस्मत लड़की समझती। वो हर छोटी चीज़ में खुश होती — आरव का ‘गुड मॉर्निंग’ मैसेज, उसका अचानक आकर चॉकलेट देना, या बस उसका नाम लेकर मुस्कुराना।

लेकिन ये खुशी ज़्यादा दिन तक नहीं चली।

कॉलेज खत्म होने में बस कुछ महीने बाकी थे, तभी आरव थोड़ा बदलने लगा। अब वो पहले जितना बात नहीं करता, कभी-कभी तो पूरा दिन बीत जाता और एक मैसेज तक नहीं करता।

रिया ने जब पूछा तो बस यही जवाब मिला, “थोड़ा बिजी रहता हूं यार, लाइफ में बहुत कुछ चल रहा है।”

रिया ने समझा, शायद सच में कुछ प्रॉब्लम होगी। लेकिन बात सिर्फ व्यस्तता की नहीं थी।

एक दिन आरव ने साफ शब्दों में कह दिया — “रिया, अब मुझे लगता है हमें थोड़ा ब्रेक लेना चाहिए। मैं अब इस रिश्ते को लेकर कन्फ्यूज हूं।”

रिया के कानों में जैसे बिजली सी गिरी। वो कुछ पल के लिए कुछ बोल ही नहीं पाई। “ब्रेक? मतलब क्या? तुम मुझसे प्यार नहीं करते अब?” उसने कांपती आवाज़ में पूछा।

आरव ने बस इतना कहा — “प्यार था, लेकिन अब फीलिंग्स वैसी नहीं रही। शायद हम एक-दूसरे के लिए नहीं बने।”

वो चला गया… और रिया वहीं ठहर गई।

उस दिन के बाद रिया की ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गई। वो पहले जैसी नहीं रही। न अब वो हंसती, न किसी से ढंग से बात करती। कॉलेज में सब कहते — “वो पगली हो गई है प्यार में।”

वो घंटों एक ही जगह बैठी रहती, आरव की पुरानी चैट्स पढ़ती, तस्वीरों को देखती और खुद से बात करती। उसकी मम्मी-पापा भी परेशान हो गए। डॉक्टर को दिखाया, पर वो तो बस एक ही बात कहती —
“वो आ जाएगा ना, सब ठीक हो जाएगा। प्लीज़, उसे बोलो एक बार आ जाए।”

लोगों ने कहा — “प्यार में धोखा मिला है, पगला गई है।”

पर किसी ने ये नहीं समझा कि प्यार जब टूटता है ना, तो सिर्फ दिल नहीं, इंसान भी टूट जाता है।

रिया अब हर उस जगह जाती जहां कभी आरव उसे ले जाया करता था। पार्क की वो बेंच, कॉफ़ी की वो दुकान, बस स्टॉप जहां वो उसे अलविदा कहता था — सब अब उसके दर्द की जगह बन चुकी थी।

एक दिन उसके हाथ में एक खत मिला, शायद आरव का। उसमें लिखा था:

“रिया, मुझे माफ़ करना। मैं डर गया था, जिम्मेदारियों से भाग गया। तुम जैसी सच्ची लड़की शायद मुझे मिल ही नहीं सकती थी… पर अब बहुत देर हो गई है।”

पर तब तक रिया उस खत को पढ़ नहीं सकी… क्योंकि वो अब खत समझने की हालत में नहीं रही थी।

उसने अब लोगों से बात करना भी बंद कर दिया। बस अपनी एक पुरानी डायरी में रोज़ लिखती —
“वो आएगा ना? आज जरूर आएगा…”


कहानी का अंत यही नहीं है, पर कभी-कभी कुछ कहानियों को अधूरा छोड़ देना ही बेहतर होता है। क्योंकि कुछ प्यार… मुकम्मल नहीं होते, सिर्फ महसूस किए जाते हैं।


अगर आपको ये कहानी पसंद आई, तो ज़रूर बताएं — और चाहें तो मैं इसका पार्ट 2 भी लिख सकता हूँ, जिसमें रिया की ज़िंदगी फिर कैसे बदलती है।

क्या आप चाहते हैं कि आरव फिर लौटे? या रिया खुद को संभाले और आगे बढ़े?

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MR KRISHNA

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